भारत यात्रा : भूटान नरेश के व्यवहार में दिखती है चिंताजनक निरंतरता…

न्यूज ब्यूरों नई दिल्ली :- भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक की भारत यात्रा के बाद विदेश सचिव विनय क्वात्रा के बयान और संयुक्त वक्तव्य की शब्दावली का सटीक विश्लेषण एक सप्ताह पहले भूटानी प्रधानमंत्री लोते शेरिंग के एक साक्षात्कार के संदर्भ में ही संभव है। यूरोपीय प्रवास में बेल्जियम के एक अखबार से शेरिंग ने कहा, ‘चीन के साथ हमारा कोई बड़ा सीमा विवाद नहीं है। एक-दो बैठकों के बाद सीमा संबंधी मुद्दों का हल निकल आने की उम्मीद है। हम देख रहे हैं कि भारत और चीन सीमा विवाद हल कर पाते हैं या नहीं,क्योंकि हम भूटान-चीन भारत तिराहे, दोकलम पर भी बात करना चाहते हैं।’ चीन अपनी सामरिक स्थित मजबूत करने के उद्देश्य से दोकलम सीमा पर नए-नए गांव बसा रहा है, भारतीय मीडिया में प्रकाशित इस खबर का प्रतिवाद करते हुए शेरिंग ने कहा, ‘भूटान में चीनी ठिकानों के बारे में तो मीडिया में बहुत कुछ आता रहता है। हम दो टूक कह चुके हैं कि चीन ने कोई घुसपैठ नहीं की है। वहां अंतरराष्ट्रीय सीमा है और हम जानते हैं कि कहां-कहां हमारा स्वामित्व है।’ उन्होंने दोकलम पर भारत की घोषित अवस्थिति को नकारते हुए स्पष्ट संकेत दे दिया कि भूटान चीन के पुराने प्रस्ताव को अब स्वीकार कर सकता है। इसके तहत भूटान चीन को दोकलम क्षेत्र देकर बदले में उससे दूसरी तरफ अधिक भूभाग प्राप्त करेगा।
नरेश की यात्रा के एक दिन बाद जारी किए गए साझा बयान में कहा गया,’भारत और भूटान के बीच विकास की लंबी साझेदारी, सहयोग और मजबूत मित्रता विश्वास और आपसी समझ पर आधारित है। दोनों देशों में अनुकरणीय द्विपक्षीय रिश्ते हैं और यह परस्पर विश्वास, सद्भाव और सभी स्तरों पर आपसी समझ पर आधारित हैं।’ छपी खबरों के मुताबिक भारतीय प्रधानमंत्री और भूटान नरेश में वार्ता के बाद विदेश सचिव ने यह साफतौर पर नहीं कहा कि दोकलम पर बातचीत हुई या नहीं। उन्होंने यह जरूर कहा,’भारत और भूटान के सुरक्षा सरोकार जुड़े हुए और अविभाज्य हैं। भारत और भूटान एक कालपरीक्षित ढांचे के अंतर्गत सुरक्षा पर सहयोग करते हैं।’ दोकलम पर उन्होंने भारत के इस मत को दोहराया कि तीनों पक्षों को मिलकर इसका हल ढूंढना चाहिए। विदेश सचिव ने जिस ढांचे को कालपरीक्षित बताया, भूटान के लिए उसकी मियाद पूरी तो नहीं हो चुकी? विदेश सचिव के बयान में निहित है कि भारत दोकलम में एकतरफा बदलाव नहीं होने देगा। २०१७ में सेना को आगे बढ़ाकर भारत यह कर भी चुका है।

भारत के प्रति भूटान के व्यवहार में एक चिंताजनक निरंतरता है। २०१७ में ७३ दिन के टकराव के बीच भूटान से जारी बयान का आशय यह था कि भारत ने भूटान की इजाजत बगैर चीन से सैनिक टकराव की हालत पैदा की। इस साल जनवरी में चीन के कुनमिंग शहर में भूटान और चीन के अधिकारियों की बैठक के बाद जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि चीन-भूटान सीमा वार्ताओं के लिए तय, तीन चरण के रोडमैप पर अमल को तेज रफ्तार देने के लिए सकारात्मक सहमति पाई गई। इस रोडमैप पर अक्तूबर २०२१ में दस्तखत हुए थे। भूटान ने रोडमैप को सार्वजनिक नहीं किया है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत से भी साझा नहीं किया होगा। नेकनीयती के बजाय चीन तो हमेशा बदनीयती का सबूत देता है। घात लगाकर नए-नए भूभागों पर कब्जा कर लेने के बाद वहां से हटने से इंकार और तयशुदा मसलों पर भी विवाद खड़ा करने का उसका एक निर्बाध पैटर्न है। जहां कब्जा नहीं कर पाता, वहां भारत को सैनिक उलझाव में डाल देता है। सुमदोरांग चू, दोकलम और अब पूर्वी लद्दाख में हम यही देख रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि विकास के लिए निर्धारित राशि को भारत सेनाओं पर खर्च करने को मजबूर रहे।

चीन का एक कूटनीतिक सिलसिला यह भी है कि वह अपने से कमजोर देशों के साथ लेन-देन कर समझौता आसानी से कर लेता है,इसमें उसे अधिक भले ही देना पड़े। जैसे गुलाम कश्मीर में पाकिस्तान से सैनिक महत्व का इलाका लेकर दूसरी तरफ उसे ज्यादा दे दिया। मैक महन रेखा भारत के संबंध में अमान्य है, मगर म्यांमार के साथ इसी रेखा पर स्थायी समझौता कर लिया। अब भूटान के साथ पुनरावृत्ति हो रही है। चीन ने भूटान के पूर्वी भाग में अरुणाचल सीमा से लगे सकतेंग अभयारण्य पर दावा ठोक दिया। अरुणाचल पर दावे को व्यावहारिक रूप देने की कोशिश ही तो यह है। कल्पना करें, रोडमैप के तहत भूटान दोकलम का समर्पण कर उत्तर में चीन से ज्यादा हासिल करने के साथ ही भारत से कहीं ज्यादा आर्थिक सहायता का रास्ता खोल लेता है। उस हालत में भारत पर सैनिक-कूटनीतिक दबाव कई गुना बढ़ जाएगा। दुनिया भर में प्रचार होगा कि ‘ तर्कसंगत और शांतिप्रेमी ‘ चीन ने भूटान से समझौता कर लिया और ‘झगड़ालू ‘ भारत नहीं करना चाहता। सच यह है कि दोकलम भूटान के लिए नहीं, भारत के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। दोकलम से भूटान के अधिकार की समाप्ति से भारत के सैनिक विकल्प भी सीमित हो जाएंगे। सिलीगुड़ी गलियारे तक चीन का पहुंचना आज की तरह वस्तुतः असंभव नहीं रहेगा। भारत को इसकी गारंटीशुदा काट निकालने की सैनिक-कूटनीतिक-आर्थिक कीमत अदा करने के लिए तैयार रहना होगा।

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