महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष की सुप्रीम सुनवाई में सीजेआई ने राज्यपाल के निर्णयों के खिलाफ की टिप्पणियाँ!

पीआर न्यूज ब्यूरों, नई दिल्ली :- महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष मामले में अब नया मोड़ आते दिखाई दे रहा है. सुनवाई अंतिम चरण में होकर अगले सप्ताह तक सुप्रीम फैसला सुनाया जा सकता है. ऐसे में आज की सुनवाई में सीजेआई ने जो टिप्पणियां की उससे शिंदे गुट के निर्णय को झटका लग सकता है.
शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से कहा कि उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था. उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल के सुखद कार्यकाल के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है ? सीजेआई ने राज्यपाल से आगे पूछा – क्या फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए पर्याप्त आधार था? आप जानते हैं कि कांग्रेस और एनसीपी एक ठोस ब्लॉक हैं.
सीजेआई ने राज्यपाल से कहा कि धारणा शिवसेना पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेदों को अधिक महत्व देने की है. एक तो पार्टी के भीतर असंतोष और दूसरा सदन के पटल पर विश्वास की कमी. ये एक-दूसरे का सूचक नहीं है. किस बात ने राज्यपाल को आश्वस्त किया कि सरकार सदन का विश्वास खो चुकी है. हम राज्यपाल के पक्ष में सभी धारणाएं बनाएंगे. राज्यपाल को इन सभी 34 विधायकों को शिवसेना का हिस्सा मानना चाहिए तो फिर फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया गया. राज्यपाल के सामने तथ्य यह है कि 34 विधायक शिवसेना का हिस्सा थे. अगर ऐसा है तो राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया. इसका एक ठोस कारण बताना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से कहा कि आप सिर्फ इसलिए विश्वास मत नहीं बुला सकते क्योंकि किसी पार्टी के भीतर मतभेद है. पार्टी के भीतर मतभेद फ्लोर टेस्ट बुलाने की आधार नहीं हो सकता. आप विश्वास मत नहीं मांग सकते. नया राजनीतिक नेता चुनने के लिए फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता. पार्टी का मुखिया कोई और बन सकता है. जब तक कि गठबंधन में संख्या समान है, राज्यपाल का वहां कोई काम नहीं. ये सब पार्टी के अंदरुनी अनुशासन के मामले हैं. इनमें राज्यपाल के दखल की जरूरत नहीं है.

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