आर्थिक आरक्षण पर ‘सुप्रीम’ मुहर, विरोध में रहे CJI…

पीआर न्यूज, नई दिल्ली :- देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन (EWS) के लिए 10% आरक्षण को लागू रखने के पक्ष में फैसला दिया. इस फैसले के साथ ये भी क्लियर हो गया है कि सरकारी नौकरी में गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण मिलता रहेगा. मोदी सरकार ने 2019 में संविधान में 103वें संशोधन के जरिए गरीब सवर्णों को आरक्षण दिया था.
इसके खिलाफ लगाई गईं कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी. संवैधानिक बेंच में चीफ जस्टिस यूयू ललित समेत 5 न्यायाधीश थे. इनमें से तीन ने गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के पक्ष में और 2 न्यायाधीशों ने इसके खिलाफ फैसला दिया. जिसके बाद 3-2 से फैसला आरक्षण के पक्ष में हुआ.

5 जजों में से 3 ने पक्ष में तो 2 ने विरोध में सुनाया फैसला
EWS पर सुनवाई सितंबर महीने में पूरी हो चुकी थी. सुप्रीम कोर्ट को आज इस पर सिर्फ फैसला सुनाना था, जिसके लिए सुबह 10 बजकर 37 मिनट पर सभी 5 जज कोर्ट रूम में पहुंचे. चीफ जस्टिस यूयू ललित ने सबसे पहले जस्टिस दिनेश महेश्वरी को फैसला सुनाने के लिए कहा. जस्टिस दिनेश महेश्वरी ने अपने फैसले में कहा कि आर्थिक आधार पर 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.
इसके बाद जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपना फैसला पढ़ा. उन्होंने भी ये कहा कि EWS आरक्षण इस व्यवस्था के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है. ये बदलाव आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के लिए है.
इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने अपना फैसला पढ़ा, उन्होंने जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी से सहमति जताई. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है. ये अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता.
EWS के पक्ष में नहीं चीफ जस्टिस और जस्टिस रवींद्र भट
आरक्षण के पक्ष में तीन जजों के बाद जस्टिस रवींद्र भट ने अपना फैसला पढ़ा.
उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी झेलने वालों को सरकार आरक्षण दे सकती है और ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध नहीं है. लेकिन इसमें से SC-ST और OBC को बाहर किया जाना असंवैधानिक है. ऐसे में EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है. ये समानता की भावना को खत्म करता है. आखिर में चीफ जस्टिस यूयू ललित ने अपना फैसला सुनाया और जस्टिस रवींद्र भट की बातों पर सहमति जताई.
कैसे शुरू हुआ मामला
संसद के दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद 31 जनवरी 2019 में केंद्र सरकार ने EWS यानी आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया था. फरवरी 2020 में 5 छात्रों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में आर्थिक आधार पर आरक्षण के खिलाफ याचिका दी. इसके बाद में सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाएं दायर की गईं. जिसके बाद 5 जजों की संवैधानिक बेंच में सुनवाई शुरू हुई. आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध करने वालों की दलील थी कि 10 फीसदी EWS कोटे से SC,ST और OBC को बाहर रखना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

EWS आरक्षण का DMK-RJD ने किया था विरोध
वहीं, सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि 50% आरक्षण सीमा में मूल रूप से कोई बदलाव नहीं है, इसलिए इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं कह सकते. 2019 में जब नरेंद्र मोदी सरकार ने EWS आरक्षण लागू किया था तो कमोबेस सभी दल सरकार के साथ थे. लेकिन कुछ दलों ने इसका विरोध किया था. बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, जेडीयू समेत सभी बड़े दलों ने इसका समर्थन किया था. लेकिन कुछ बड़ी पार्टियों ने इसका खुलकर विरोध किया था. वो पार्टियां डीएमके, राष्ट्रीय जनता दल और लेफ्ट पार्टियां थीं.
घटनाक्रम पर एक नजर
8 जनवरी 2019 : लोकसभा ने 103वें संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी.
9 जनवरी : राज्यसभा ने 103वें संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी.
12 जनवरी : विधि और न्याय मंत्रालय ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सहमति दे दी है.
फरवरी : नए कानून को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई.
6 फरवरी : न्यायालय ने संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सरकार को नोटिस जारी किया.
8 फरवरी : न्यायालय ने 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटे पर रोक लगाने से इनकार किया.
8 सितंबर 2022 : चीफ जस्टिस यू यू ललित की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने अपील सुनने के लिए पीठ का गठन किया.
13 सितंबर : न्यायालय ने दलीलें सुननी शुरू कीं.
27 सितंबर : कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा.
7 नवंबर : न्यायालय ने 3:2 के बहुमत से ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा.

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